एक मृत कातिल - 3
निकोलस मुझे सेंट बर्नेड लेकर गया । वहाँ मेरे लिए एक चिट्ठी थी । मैनें निकोलस से पूछा क्या वह चिट्ठी मेरे लिए हीं थी ? वो बोला "बिलकुल" । मैनें चिट्ठी खोला और उसमें मेरे लिखा था "प्रोफेसर, अल्बर्ट ( जो मेरा नाम था ) आपने जो मेरे साथ किया वो गलत था , लेकिन अब मैं आ चुका हूं । जो तबाही वेलिंगटन में हुई वो पिट्सबर्ग में भी दोहराएगी । रोक सको तो रोक लो -- अज्ञात" । (शाम 6 बजे टाउन हॅाल आ जाना )
मैं कुछ देर तक स्तब्ध रह गया था । मेरी भला किसी से क्या दुश्मनी । लेकिन अगर यह जानना था की यह तबाही कौन मचा रहा था तो टाउन हॅाल जाना हीं पड़ेगा ।
शाम होते हीं में टाउन हॅाल पहुँच गया मैं उधर छत पर गया लेकिन वहाँ कोई नहीं था । मैं वहाँ पहुँचा तो कोई नहीं था लेकिन अचानक मुझे एक आवाज़ सुनाई पड़ी "आ गए तुम "
मुझे एक लंबा कद का हट्टा गट्ठा आदमी दिखा । मैंने पुछा कि वह था कौन ? वह अंधेरे से हटकर रौशनी में आया तो मुझे उसका चहरा जाना पहचाना लगा । तत्काल वो बोला " मेरा नाम जॅा न है " । मुझे एकाएक याद आया की यह वही जॅान है जिसे मैनें जेल भिजवाया था । " तो तुमने हीं यह वायरस फैलाया है " मैनें पूछा । वह बोला " हाँ , यह सारी तबाही मैनें मचाई है । तुमने मुझे जेल भेजवा कर........" । मैनें उसकी बात काटते हुए कहा " तुम आर - वायरस ,इस सब तबाही की जड़ पर गैर कानूनी खोज कर रहे थे । मैं तुम्हे इन सब के साथ कैसे काम करने देता ? उसने कहा " मैं ये काम दुनिया की भलाई के लिए कर रहा था "। मैने कहा "भलाई के लिए या तबाही के लिए ?" तब तक में उसने एक काले बैग से बंदूक निकाली और एक बोतल की शीशी निकाली और कहा " जानते हो इसमें क्या है ? इसमें तबाही का रंग छुपा है जो अब पिट्सबर्ग पर बरसेग..... कि अचानक मेरे दाईं ओर से गोली चली । मैनें तुरंत छलांग मारकर उस आर - वायरस की शीशी लपकने में कामयाब रहा अन्यथा एक बड़ी दुर्घटना घट सकती थी । मेनें देखा निकोलस हाथ में बंदूक लिए था , और कुछ साथी जॅान को गिरफ्तार करने आ रहे थे । तभी निकोलस मेरे पास आया और पुछा कि मैं ठीक हूँ या नहीं । मैनें उसे बताया कि मैं तो ठीक हूँ पर तुम यहाँ कैसे ? निकोलस बोला " जब आप वह चिट्ठी पढ रहे थे थए तब मुझे थोड़ी शंका हुई इसलिए जब से आप यहाँ पहुँचे हैं तब से मैं इस बिल्डिंग के चक्कर काट रहा था । तत्काल वो जॅान से पूछताछ करने चले गया और मैं अन्दर हीं अंदर खुश था कि वो दिन जो मैनें वेलिंगटन में देखा वो मुझे पिट्सबर्ग में नहीं देखना पड़ा
--------प्रहर्ष प्रियम
निकोलस मुझे सेंट बर्नेड लेकर गया । वहाँ मेरे लिए एक चिट्ठी थी । मैनें निकोलस से पूछा क्या वह चिट्ठी मेरे लिए हीं थी ? वो बोला "बिलकुल" । मैनें चिट्ठी खोला और उसमें मेरे लिखा था "प्रोफेसर, अल्बर्ट ( जो मेरा नाम था ) आपने जो मेरे साथ किया वो गलत था , लेकिन अब मैं आ चुका हूं । जो तबाही वेलिंगटन में हुई वो पिट्सबर्ग में भी दोहराएगी । रोक सको तो रोक लो -- अज्ञात" । (शाम 6 बजे टाउन हॅाल आ जाना )
मैं कुछ देर तक स्तब्ध रह गया था । मेरी भला किसी से क्या दुश्मनी । लेकिन अगर यह जानना था की यह तबाही कौन मचा रहा था तो टाउन हॅाल जाना हीं पड़ेगा ।
शाम होते हीं में टाउन हॅाल पहुँच गया मैं उधर छत पर गया लेकिन वहाँ कोई नहीं था । मैं वहाँ पहुँचा तो कोई नहीं था लेकिन अचानक मुझे एक आवाज़ सुनाई पड़ी "आ गए तुम "
मुझे एक लंबा कद का हट्टा गट्ठा आदमी दिखा । मैंने पुछा कि वह था कौन ? वह अंधेरे से हटकर रौशनी में आया तो मुझे उसका चहरा जाना पहचाना लगा । तत्काल वो बोला " मेरा नाम जॅा न है " । मुझे एकाएक याद आया की यह वही जॅान है जिसे मैनें जेल भिजवाया था । " तो तुमने हीं यह वायरस फैलाया है " मैनें पूछा । वह बोला " हाँ , यह सारी तबाही मैनें मचाई है । तुमने मुझे जेल भेजवा कर........" । मैनें उसकी बात काटते हुए कहा " तुम आर - वायरस ,इस सब तबाही की जड़ पर गैर कानूनी खोज कर रहे थे । मैं तुम्हे इन सब के साथ कैसे काम करने देता ? उसने कहा " मैं ये काम दुनिया की भलाई के लिए कर रहा था "। मैने कहा "भलाई के लिए या तबाही के लिए ?" तब तक में उसने एक काले बैग से बंदूक निकाली और एक बोतल की शीशी निकाली और कहा " जानते हो इसमें क्या है ? इसमें तबाही का रंग छुपा है जो अब पिट्सबर्ग पर बरसेग..... कि अचानक मेरे दाईं ओर से गोली चली । मैनें तुरंत छलांग मारकर उस आर - वायरस की शीशी लपकने में कामयाब रहा अन्यथा एक बड़ी दुर्घटना घट सकती थी । मेनें देखा निकोलस हाथ में बंदूक लिए था , और कुछ साथी जॅान को गिरफ्तार करने आ रहे थे । तभी निकोलस मेरे पास आया और पुछा कि मैं ठीक हूँ या नहीं । मैनें उसे बताया कि मैं तो ठीक हूँ पर तुम यहाँ कैसे ? निकोलस बोला " जब आप वह चिट्ठी पढ रहे थे थए तब मुझे थोड़ी शंका हुई इसलिए जब से आप यहाँ पहुँचे हैं तब से मैं इस बिल्डिंग के चक्कर काट रहा था । तत्काल वो जॅान से पूछताछ करने चले गया और मैं अन्दर हीं अंदर खुश था कि वो दिन जो मैनें वेलिंगटन में देखा वो मुझे पिट्सबर्ग में नहीं देखना पड़ा
--------प्रहर्ष प्रियम
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